Saturday 29 April 2017

अध्यात्म एवं जीवन प्रबंधन विषयक दो दिवसीय कार्यशाला

 वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में संकाय भवन स्थित कांफ्रेंस हाल में  अध्यात्म एवं जीवन प्रबंधन विषयक दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।इस कार्यशाला का उद्देश्य शिक्षक, अधिकारी एवं कर्मचारियों का आध्यात्मिक उन्नयन करना है।कार्यशाला के मुख्य अतिथि , विषय विशेषज्ञ हरिद्वार देव संस्कृति विश्वविद्यालय के डॉ गोपाल कृष्ण शर्मा ने कहा कि वर्तमान में एकल परिवारों में तनाव आम बात हो गयी है जबकि पहले संयुक्त परिवारो में ऐसा नही था। आज हम अध्यात्म को अपना कर  अवसान रहित जीवन जी सकते  है और व्यक्तित्व को सकारात्मक बना सकते है।उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपतिप्रो पीयूष रंजन अग्रवाल ने कहा कि आध्यात्म को अपनाकर हम सहज जीवन जी सकते हैं।योग हमारी पुरानी परंपरा है।नियमित योगाभ्यास हमे बहुत सारी समस्याओं से निजात दिलाता है।अध्यक्षता करते हुए
प्रो धरणीधर दुबे ने कहा कि विलासिता पूर्ण जीवन सारी समस्याओं की जड़ है।हमें आध्यात्म से शारीरिक ही नही मानसिक संतुष्टि भी मिलती है। कार्यशाला केआयोजन सचिवडॉ अविनाश पाथर्डीकर नें कार्यशाला के उद्देश्य और औचित्य पर प्रकाश डाला।उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों के चलते रहने से नई सीख मिलती है।हरिद्वार से आये विषय विशेषज्ञ डॉ पंकज चंदेल ने तकनीकी सत्रों में आध्यात्म और जीवन पर प्रकाश डाला।इस अवसर पर प्रो एके श्रीवास्तव,  डॉ वी डी शर्मा, कुलसचिव डॉ देवराज,  डॉ आशुतोष सिंह, डॉ अमित वत्स, डॉ प्रदीप कुमार, डॉ राम नारायण, डॉ एस पी तिवारी, डॉ सुधीर डॉ संजय श्रीवास्तव, श्री एमएम भट्ट, श्री राजनारायण सिंह, डॉ धर्मशीला गुप्ता  सहित परिसर के कर्मचारी, शिक्षक एवं परिवार गण मौजूद रहे।स्वागत  डॉ धर्मेंद्र सिंह  एवं संचालन डॉ अविनाश पाथर्डीकर द्वारा किया गया।
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कार्यशाला   समापन 



वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के  संकाय भवन स्थित कांफ्रेंस हाल में  अध्यात्म एवं जीवन प्रबंधन विषयक दो दिवसीय कार्यशाला  का समापन  शनिवार को किया गया।  कार्यशाला के  प्रतिभागियों  ने ऐसे आयोजन के लिए आयोजन मंडल को धन्यवाद ज्ञापित किया और अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि यह कार्यशाला  शिक्षक, अधिकारी एवं कर्मचारियों के  आध्यात्मिक उन्नयन में महत्वपूर्ण है ।
तकनीकी सत्र में  व्यक्तित्व के चार आयामों भौतिक  मानसिक सामाजिक आध्यात्मिक तथा अध्यात्म एवं आत्म प्रबंधन पर विस्तार से चर्चा की गई। वक्ताओं ने कहा कि आध्यात्मिक व्यक्तित्व ही शेष तीनो आयामों को संभालता है। तकनीकी सत्र में योग  की क्रियाएं करवाई गयीं। इस अवसर पर  सानंद जीवन जीने हेतु  एक वृत्त चित्र का प्रदर्शन किया गया ।
समापन सत्र में  आयोजन सचिव डॉ अविनाश पाथर्डीकर  ने कहा कि जीवन में  संतुष्टि से बढ़ कर कुछ नहीं है। जीवन में हमेशा कुछ प्राप्त करने की होड़ ने हमे तनाव ग्रस्त कर दिया है परिणामतः आज रिश्ते -नाते टूट रहे हैं। धन लिप्सा सारे  समस्याओं की जड़  है। विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ धर्मेंद्र सिंह ने कहा  कि विश्वविद्यालय परिसर के शिक्षक एवं कर्मचारियों के परिवार के आध्यात्मिक एवं मानसिक उन्नयन के लिए आने वाले समय मे भी विवि  इस प्रकार का   आयोजन करेगा। कर्मचारी संघ के पूर्व उपाध्यक्ष  सुशील प्रजापति ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद  ज्ञापित किया। प्रतिभागियों ने  कार्यक्रम के अंत में मोमबत्ती जलाकर संकल्प लिया कि  आत्मदीपो भव होकर एक प्रकाशपुंज की तरह  वे परिसर में कार्य करते रहेंगे । 
इस अवसर पर प्रोफ़ेसर डीडी दुबे , प्रो एके श्रीवास्तव,  डॉ वी डी शर्मा, कुलसचिव डॉ देवराज,  डॉ आशुतोष सिंह, डॉ अमित वत्स,  डॉ प्रदीप कुमार, डॉ राम नारायण, डॉ एस पी तिवारी,डॉ सुधीर  डॉ संजय श्रीवास्तव, श्री एमएम भट्ट, श्री राजनारायण सिंह, डॉ धर्मशीला गुप्ता   सहित परिसर के कर्मचारी, शिक्षक एवं परिवार गण मौजूद रहे।संचालन डॉ अविनाश पाथर्डीकर ने किया ।

Thursday 27 April 2017

लोगों की आशा का केंद्र है विश्वविद्यालय- प्रो. पीयूष

समारोह कर शिक्षकों ने दी विदाई, बताया स्वर्णिम कार्यकाल

विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने बुधवार की शाम परिसर में समारोह आयोजित कर कुलपति प्रो. पीयूष रंजन अग्रवाल को विदाई दी। अंगवस्त्रम एवं स्मृति चिन्ह देकर उन्हें सम्मानित किया गया। उनके कार्यकाल को एक स्वर्णिम काल बताते हुए वक्ताओं ने अपने अनुभवों को साझा किया।
प्रो. डीडी दुबे, प्रो. बीबी तिवारी, वित्त अधिकारी एमके सिंह, कुलसचिव डा. देवराज, प्रो. संगीता साहू, डा. मनोज मिश्र, डा. एके श्रीवास्तव, डा. अमित वत्स व विनय वर्मा ने कुलपति के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा की। कहा कि उन्होंने सिस्टम में सुधार किया। कार्यकाल में नैक मूल्यांकन, परीक्षा एवं रिजल्ट सुधार, खिलाड़ी सम्मान समारोह, शैक्षणिक वातावरण निर्माण, शोध अनुसंधान के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए। संस्था का विकास सर्वोपरि रखा। विश्वविद्यालय के हर बिंदु को समझने में अपना महत्वपूर्ण समय दिया। सरल व्यक्तित्व आपकी पहचान है। सभी के दुख-दर्द को समझा, हर संभव मदद की। 
कुलपति प्रो. पीयूष रंजन अग्रवाल ने कहा कि मेरा इसमें कुछ नहीं है। सभी के सहयोग से संभव हुआ। जब आप किसी संस्थान को समृद्ध करते हैं तो वह आपके व्यक्तित्व को भी बढ़ाता है। सभी को साथ लेकर चलने की आदत डालनी चाहिए। यदि आपमें जागरूकता व चाह है तो मंजिल जरूर मिलेगी। विश्वविद्यालय लोगों की आशा का केंद्र है। ज्ञान का मंदिर है। इससे समाज को प्रकाशित करें। सबको आपसे आशाएं हैं। सामाजिक संरचना में आपको जान पहचान बनाए बगैर समस्याओं से निजात नहीं मिलने वाली। विद्यार्थियों को प्रयोगशालाओं में अधिक व्यस्त रखें, उन्हें कुछ नया दें। आप सर्वश्रेष्ठ रहें यह भाव सदा मन में हो। संभावनाओं की तलाश हमेशा जारी रखें। सभी को जिम्मेदारियों से मैंने जोड़े रखा। इसका उद्देश्य यही था कि एक ओर जहां संस्थान को गति मिले, दूसरी ओर आप परिसर के प्रत्येक बिंदु से जुड़ सकें। मन में सदा सोचें कि हम समाज व संस्थान को क्या दे रहे हैं। इस अवसर पर कुलपति की पत्नी प्रतिभा अग्रवाल, डा. मानस पांडेय, डा. बीडी शर्मा, उपकुलसविच संजीव सिंह, डा. टीबी सिंह, डा. राम नारायन, डा. वंदना राय, डा. अजय द्विवेदी, डा. प्रदीप कुमार, डा. राजकुमार, संजीव गंगवार, डा. रसिकेश, डा. सुनील कुमार, डा. सुशील कुमार सिंह, धर्मेंद्र सिंह, डा. आलोक सिंह, डा. परमेंद्र सिंह, आलोक दास, डा. विवेक पांडेय, डा. केएस तोमर, सुबोध पांडेय, लक्ष्मी प्रसाद मौर्या आदि उपस्थित रहे। संचालन डा. अविनाश पाथर्डिकर व धन्यवाद डा. आशुतोष सिंह ने किया। 

Wednesday 26 April 2017

युवा महोत्सव में पूर्वांचल विश्वविद्यालय को प्रदेश में मिला दूसरा स्थान

पूर्वांचल विश्वविधालय ने उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में मंगलवार को आयोजित अंतरविश्वविद्यालय यूथ फेस्टिवल (युवा संगम)  में प्रदेश में द्वितीय  स्थान पर कब्जा जमाया। बुधवार को प्रतियोगिता से लौटने के बाद प्रतिभागियों को कुलपति प्रो पीयूष रंजन अगृवाल ने बधाई दी. उन्होंने कहा कि  शैक्षिक गातिविधियों के साथ सास्कृतिक अभिरुचियों से छात्रों का सर्वागीण विकास  होता है।विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों  ने बेहतर प्रदर्शन कर विश्वविद्यालय का मान बढ़ाया है. 
सांस्कृतिक संयोजक डॉ रसिकेश ने बताया कि  "युवा सगंम " मे आयोजित रंगोली,कोलाज ,मेंहदी, एकल गायन, वाध यंत्र,लघु नाटक, फैन्सी डेस ,स्लोगल राइटिंग ,स्पाट पेन्टिंग,पोस्टर व निबन्ध प्रतियोगिता में विश्वविद्यालय की टीम ने भाग लिया।टीम में  ३५ छात्र - छात्राएं शामिल थी.  जिसमें मेंहदी प्रतियोगिता में  प्रिती यादव ने द्वितीय  स्थान पोस्टर प्रतियोगिता में  एम.बी.ए (एच.आर.डी ) की कृतिका सिंह ने तृतीय स्थान ,स्किट प्रतियोगिता में श्रृंखला, शुभम,प्रियांशु ,पूजा, निधी और निवेदिता यादव की टीम ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया।  फैंन्सी डेस प्रतियोगिता में निधी ने तृतीय स्थान प्राप्त किया । समस्त प्रतियोगिताओं में प्रदर्शन के आधार पर  वि.वि. को द्वितीय स्थान प्रदान किया ।टीम लीडर के रूप में  विनय वर्मा,डॉ  विवेक कुमार पाण्डेय व  पूजा सक्सेना ने अपना योगदान दिया।टीम लीडर ने कुलपति को  रनर की शील्ड सौंपी। 
इस अवसर पर डॉ दीनानाथ सिंह, वित्त अधिकारी एम के सिंह, कुलसचिव डॉ देवराज, प्रो  पाठक, डॉ लालजी त्रिपाठी, डॉ मानस पांडेय, डॉ दिग्विजय सिंह राठौर, डॉ सुरजीत यादव आदि मौजूद रहे. 

जीएसटी एंड स्टूडेंट एम्प्लॉयबिलिटी विषयक संगोष्ठी आयोजित

विश्वविद्यालय के वित्तीय अध्ययन विभाग द्वारा फार्मेसी संस्थान के शोध एवं नवाचार केंद्र में मंगलवार को जीएसटी एंड स्टूडेंट एम्प्लॉयबिलिटी विषयक संगोष्ठी आयोजन किया गया. संगोष्ठी में वस्तु एवं सेवा कर के विभिन्न आयामों एवं  रोजगार के नए अवसरों  के बारे में भी चर्चा की गई. 

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो पीयूष रंजन अग्रवाल ने कहा कि बदलते परिवेश में भारतीय नागरिक, व्यवसायी और उद्यमी को वस्तु एवं सेवा कर को समझना होगा। यदि हम इसे  नहीं समझते तो हम अपने देश को नहीं समझ पाएगें। उन्होंने कहा कि  इंटरनेट ने आर्थिक सुधारों को पहिया दिया है जिसे आज गति मिल गई है.शिक्षा ने इसमें इंजन का काम  किया है.  उन्होंने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर जीएसटी के प्रति सभी को जागरूक होने की जरुरत है.सम्पूर्ण देश में वस्तुओं और सेवाओं पर एक ही टैक्स लगेगा।  केंद्र और राज्य का अंश भी आसानी से बट जायेगा। 


संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि आईसीए संस्था क्वे महाप्रबंधक राजेश त्रिवेदी ने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने रोजगार के नए अवसर दिए है.शिक्षण संस्थाओं को इसे ध्यान में रख कर नई पीढ़ी को तैयार करना चाहिए।उन्होंने कहा कि सफल होने के लिए लोकाचार एवं विक्रयकला  दोनों में पारंगत होना समय की मांग है । जीवन में विजेता बनने के लिए  कौशल के साथ ही साथ  अच्छा व्यवहार भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि नियोक्ता उन्हीं को रोजगार देते है जो उनकी जरूरतों को पूरा कर सके. 

विषय विशेषज्ञ कोलकता के चार्टेड अकांउंटेंट अभिषेक टिबरवाल ने कहा कि जीएसटी वैट का परिष्कृत रूप है. वैट में व्यापारियों को क्रेडिट कम मिलता था लेकिन इस नए कर से ज्यादा टैक्स क्रेडिट मिलेगा। जिससे उपभोक्ताओं को भी लाभ मिलेगा। जीएसटी लागू  होने पर व्यापारियों को महीने में  कम से कम तीन बार टैक्स फाइल करना होगा। इससे किसी को घबराने की जरुरत नहीं है. 
संगोष्ठी के संयोजक विभागाध्यक्ष डॉ अजय द्विवेदी ने विषय प्रवर्तन एवं धन्यवाद् ज्ञापन प्रो बी बी तिवारी ने किया । सञ्चालन डॉ राजेश शर्मा द्वारा किया गया.  इस अवसर पर डॉ अजय प्रताप सिंह, डॉ वी डी  शर्मा, डॉ मनोज मिश्र, डॉ दिग्विजय सिंह राठौर, डॉ वन्दना राय, डॉ एस पी तिवारी, डॉ अवध बिहारी सिंह, डॉ आशुतोष सिंह, डॉ रसिकेश, डॉ प्रदीप कुमार, डॉ अलोक सिंह, प्रमेन्द्र सिंह सहित विद्यार्थी मौजूद रहे. 

Wednesday 19 April 2017

सामाजिक समरसता में पूर्वांचल का योगदान विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

10/04/2017

 विश्वविद्यालय के संगोष्ठी भवन में सोमवार को भारत समरसता मंच एवं विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में सामाजिक समरसता में पूर्वांचल का योगदान विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी महात्मा ज्योतिबा फूले के जन्मदिवस के उपलब्ध में आयोजित की गयी। संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध सामाजिक चिन्तक एवं विचारक इन्द्रेश कुमार ने कहा कि आज कट्टर नहीं, नेक, अच्छे और सच्चे इंसान बनने की जरूरत है। हर एक जाति में ईश्वर का वास होता है। इसलिए हम सभी को जाति, द्वेष व दंश से मुक्त होकर सबका सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि छूआछूत अधर्म है और समानता धर्म है। आज समरसता युक्त, तलाक मुक्त भारत की जरूरत है। हमारे सामाजिक संरचना में जन संस्कृति के पुरोधा रहे रामायण एवं महाभारत के रचयिता बाल्मिकी एवं वेद व्यास सामाजिक समरसता के मूल में थे।
बतौर विशिष्ट अतिथि श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरके पाण्डेय ने कहा कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में समरसता है। समाज में इसका अनुसरण न होने के कारण आज लोलुपता का विकास हो गया है। ज्ञान प्राप्ति सामाजिक समरसता का मूल था। उन्होंने कहा कि जो व्यवहार स्वयं को अच्छा न लगे वह दूसरे के साथ नहीं करना चाहिए।
विषय प्रवर्तन करते हुए पूर्व कुलपति प्रो. पीसी पातंजलि ने कहा कि ज्योतिबा फूले समाज के कमजोर वर्ग के होने के बाद भी विपरीत परिस्थितियों में समाज को सुधारने में बड़ी भूमिका अदा की। वह सामाजिक भेदभाव, अंधविश्वास को दूर करने में सदैव सक्रिय रहे। उन्होंने नारियों को पुरूषों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ माना।
बतौर विशिष्ट अतिथि बारीमठ के जनसंत योगी देवनाथ ने कहा कि पूर्वांचल की धरती का सामाजिक समरसता में बड़ी भूमिका रही है। भगवान राम अयोध्या से निकलकर हर वर्ग के लोगों को लगे लगाया। आज स्वार्थ, वासना, अज्ञान व अहंकार के कारण मनुष्य एक-दूसरे को छोटा समझने लगा है।
बतौर मुख्य अतिथि शायर एवं चिंतक अहमद निसार ने अपने गीत मैं दरिया हूं सबकी प्यास बुझाता हूं, मैं क्या जानू हिन्दू-मुस्लिम... के माध्यम से सामजिक समरसता का संदेश दिया। 
अध्यक्षीय संबोधन में पूर्व कुलपति प्रो. यूपी सिंह ने कहा कि पूर्वांचल संतों व महात्माओं की भूमि रही है। कबीर, रैदास, गोरक्ष नाथ, भगवान बुद्ध, महावीर, रामानन्द जैसे अनेक लोगों ने इस क्षेत्र विशेष की सामाजिक समरसता के लिए अपना जीवन अर्पित किया है। सामाजिक विकास व उत्थान के लिए हम सबको एकजुट होकर सबके प्रति समभाव रखना होगा।
कार्यक्रम में सम्पादक कैलाश नाथ, डॉ. विमला सिंह, संजय सेठ, निसार अहमद, डॉ. कमर अब्बास एवं राजीव श्रीवास्तव को सामाजिक समरसता के लिए सम्मानित किया गया। डॉ. पीसी पातंजलि की कृति ‘‘बाबा साहब के सपनों का भारत’’ विषयक पुस्तक का विमोचन भी हुआ।
संयोजक डॉ. मानस पाण्डेय ने गोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। स्वागत डा. अविनाश पाथर्डीकर, धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अमित वत्स एवं संचालन डॉ. एचसी पुरोहित ने किया। इस अवसर पर प्रो. डीडी दूबे, प्रो. बीबी तिवारी, कुलसचिव डॉ. देवराज, सुरेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. अजय प्रताप सिंह, डॉ. राधेश्याम सिंह, डॉ. राजीव सिंह, प्रो. मुन्नी लाल, डॉ. पीसी विश्वकर्मा, डॉ. वीडी शर्मा, अशोक सिंह, कृष्ण कुमार जायसवाल, डॉ. अरूण कुमार सिंह, डॉ. मनोज मिश्र, डॉ. मनोज वत्स, डॉ. दिग्विजय सिंह राठौर, डॉ. आशुतोष सिंह, डॉ. अवध बिहारी सिंह, डॉ. आलोक सिंह, संतोष सिंह, अंशू सिंह, डॉ. केएस तोमर, डॉ. पीके कौशिक आदि उपस्थित रहे।


Monday 3 April 2017

शोध पत्र लेखन कार्यशाला

फार्मेसी संस्थान स्थित शोध एवं नवाचार केन्द्र में मंगलवार को विवेकानन्द केन्द्रीय पुस्तकालय एवं स्प्रिंगर नेचर के संयुक्त तत्वावधान में शोध पत्र लेखन पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में विशेषज्ञों ने शोध पत्र लेखन के विविध आयामों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की।
कार्यशाला में बतौर विषय विशेषज्ञ मुंबई के डॉ. रवि मुरूगेशन ने कहा कि शोध पत्र लेखन एक कला है और आज के वैज्ञानिक युग में इसके लेखन की बारीकियों को जानना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि एक शोध पत्र लेखन मौलिक होना चाहिए। शोधार्थियों को सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि उन्होंने अध्ययन क्यों किया, अध्ययन में क्या किया, क्या पाया और इससे ज्ञान में क्या वृद्धि हुई। इन सवालों का जवाब पाठक चाहता है। उन्होंने कहा कि शोधार्थियों को प्रतिदिन 30 मिनट पढ़ने की आदत डालनी चाहिए। इसके साथ ही शोध पर अपने सहयोगियों एवं विषय विशेषज्ञों के साथ सदैव चर्चा करते रहना चाहिए जिससे नया दृष्टिकोण पैदा होता है। आज वैश्विक स्तर पर बहुत सारे शोध एवं जर्नल क्लब स्थापित हैं जो शोधार्थियों एवं शिक्षकों के आपसी विचार-विमर्श के लिए आवश्यक है।
स्प्रिंगर नेचर के लाइसेंसिंग मैनेजर कुंज वर्मा एवं मार्केटिंग मैनेजर सुरभि धमीजा ने भी कार्यशाला में अपनी बात रखी।
विवेकानन्द केन्द्रीय पुस्तकालय के मानद अध्यक्ष डॉ. मानस पाण्डेय ने स्वागत एवं विषय विशेषज्ञ को स्मृति चिन्ह भेंट किया। उन्होंने कार्यशाला का विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि शोधार्थियों को अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुरूप शोध लेखन के लिए गंभीर लेखन एवं जागरूक होने की जरूरत है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विद्युत मल एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अविनाश पाथर्डीकर ने किया।
इस अवसर पर डॉ. अजय प्रताप सिंह, डॉ. वन्दना राय, डॉ. रामनरायन, डॉ. मनोज मिश्र, डॉ. दिग्विजय सिंह राठौर, डॉ. सुशील कुमार, डॉ. रसिकेश, डॉ. एसपी तिवारी, डॉ. मुराद अली, डॉ. प्रदीप कुमार, डॉ. नुपूर तिवारी, डॉ. अवध बिहारी सिंह, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. आलोक कुमार सिंह, डॉ. प्रवीण सिंह, डॉ. प्रमेन्द्र सिंह आदि उपस्थित रहे।

दिनांक- 21/03/2017