Saturday 30 April 2016

नैतिकता, सफलता एवं उत्कृष्टता: एक जीवन पद्धति विषयक संगोष्ठी

विश्वविद्यालय के फार्मेसी संस्थान स्थित शोध एवं नवाचार केन्द्र में स्थित शनिवार को नैतिकता, सफलता एवं उत्कृष्टता: एक जीवन पद्धति विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पंकज मित्तल ने कहा कि भौतिकता की आंधी में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। सुखद स्थिति ये है कि नैतिक शिक्षा के द्वारा निर्मित व्यक्तित्व एवं चरित्र आज भी इस आंधी को रोकने में समर्थ एवं सक्षम है। उन्होंने महाकाव्यों का उद्धरण देते हुए श्रीराम एवं श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र को निरूपित करते हुए कहा कि आज के दौर में उनके व्यक्तित्व से सीख लेने की जरूरत है। उन्होंने कहा पैसा कमाना या उच्च पद पाना सफलता का मापदण्ड नहीं है। नैतिकता की शुरूआत पहले घर में मां बाप से फिर शैक्षणिक संस्थानों से और अंत में समाज से होती है। उन्होंने नीति नियंताओं से नैतिक शिक्षा की पाठशाला दसवीं कक्षा तक अनिवार्य करने की पुरजोर वकालत की।
उन्होंने कहा कि मजबूत समाज एवं राष्ट्र निर्माण के लिए नैतिकता जरूरी है। भारत का संविधान हमें मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य प्रदान करते है परन्तु आज अफसोसजनक यह है कि हम अपने कर्तव्य को निभाये बगैर अधिकारों की मांग करते है। समाज में यह संदेश जाना चाहिए कि नैतिकता के साथ रहने पर ही सफलता मिलती है। चरित्र की आधारशिला मजबूत रहेगी तभी हम बेहतर समाज की स्थापना कर पाएंगे।
बतौर विशिष्ट अतिथि बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय पटना के पूर्व कुलपति प्रो. जनक पाण्डेय ने कहा कि व्यक्ति को अपने ज्ञानचक्षु को विकसित करने की जरूरत है। शिक्षकों का कर्तव्य है कि वे विद्यार्थियों को ज्ञान देने से पूर्व अपने ज्ञान विकसित करें। उत्कृष्टता के अपने विविध आयाम है जिसमें व्यक्ति, संस्था की उत्कृष्टता की अपनी अलग मापदण्ड एवं संकेतक है। यह तय करना आवश्यक है कि व्यक्ति या संस्था अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सक्रिय है। यह उत्कृष्टता का संकेतक है। समय परिवर्तनशील है और परिवर्तन के दौर में हमेशा उत्कृष्टता को बरकरार करने के लिए समय के साथ तालमेल बनाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि उत्कृष्टता में शुद्धता नैतिकता से आती है तभी सफलता मिलती है। संसाधन महत्वपूर्ण नहीं बल्कि मानवीय प्रयास महत्वपूर्ण है।
बतौर विशिष्ट अतिथि प्रबंध अध्ययन संस्थान बीएचयू के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो. आर.के. पाण्डेय ने कहा कि व्यक्तित्व का निर्माण होने से ही देश का निर्माण होगा। नैतिकता का सम्बन्ध बुद्धि, विवेक से है। वहीं उत्कृष्टता व्यक्ति के व्यक्तित्व से परिलक्षित होती है। इच्छाओं को बलवान नहीं बनाना चाहिए। उसी से समस्याओं का जन्म होता है। यश, कीर्ति की प्राप्ति त्याग से, धन की सत्य से और विद्या की प्राप्ति अभ्यास से मिलती है। अपनी कुशलता से किसी भी कार्य को करने की आदत डालनी चाहिए।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पीयूष रंजन अग्रवाल ने कहा कि ‘जियो और जीने दो’ के वाक्य को अपने कर्तव्य पालन से ही आप सार्थक कर सकते है। उन्होंने कहा कि आज व्यक्ति सूचना और प्रौद्योगिकी पर सवार होकर नये-नये अवसरों की सवारी करना चाहता है। इस दौर में हमने प्रतिस्पर्धा और दौड़ को क्षणिक बना दिया है। संयुक्त परिवारों के विघटन ने हमारे समाज में एक रिक्तता और शून्य स्थापित कर दिये है जो कि यह हमारी प्राचीन पाठशाला हुआ करती थी। आज के युवाओं के पास वह पाठशाला नहीं है जिसमें नात रिश्तेदारों और पूरे परिवारों के साथ एक बड़ा सदन हमें नित नये ज्ञान से लाभान्वित कराता था। आज का युवा सारे सवाल के लिए नई सूचना तकनीकी पर आश्रित हो गया है। हमारे ज्ञान के प्राचीन स्रोत, संवाद, पुस्तकें एवं आरम्भिक गुरू से नई पीढ़ी दूर हो रही है। आज बढ़ते ज्ञान के साथ हमारे उद्देश्य भी समय-समय पर बदलते रहते है। उन्होंने कहा कि आज के अवसर में चुनौतियां बहुत है लेकिन जो सच्चा है वो कभी पराजित नहीं हो सकता। 
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो. डीडी दूबे ने कहा कि विश्वविद्यालयों का यह गुरूतर दायित्व है कि नैतिकता, सफलता एवं उत्कृष्टता जैसे विषय पर संवाद एवं परिचर्चा अनवरत जारी रखी जाय। कार्यक्रम की शुरूआत मां सरस्वती जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया। विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा सरस्वती वंदना एवं विश्वविद्यालय कुलगीत की प्रस्तुति की गयी। कुलपति द्वारा मुख्य अतिथि एवं अतिथिगण को स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्रम् भेंट कर सम्मानित किया गया। संचालन एवं आभार प्रदर्शन कार्यक्रम सचिव डा. अविनाश पाथर्डीकर ने किया।
इसके पूर्व मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि एवं कुलपति द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में स्थित स्व. वीर बहादुर सिंह जी की प्रतिमा, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित किया गया। मुख्य अतिथि द्वारा विवेकानंद केन्द्रीय पुस्तकालय में उत्तर प्रदेश शासन द्वारा अनुदानित सेंटर आॅफ एक्सलेंस का शुभारम्भ किया और पुस्तकालय के बारे में जानकारी प्राप्त की। मानद् पुस्तकालयाध्यक्ष डा. मानस पाण्डेय ने अतिथियों को पुस्तकालय के विविध आयामों से परिचित कराया।
अतिथिगण द्वारा फार्मेसी के विद्यार्थियों द्वारा आयोजित प्रदर्शनी, फार्मा ओवेशन-16 का निरीक्षण एवं ग्रुप फोटोग्राफ कराया गया। फार्मेसी भवन के द्वितीय तल पर निर्मित गोमती एवं सरयू खण्ड अनुसंधान एवं शोध केंद्र का शुभारम्भ एवं निरीक्षण किया गया। 
इस अवसर पर वित्त अधिकारी एमके सिंह, कुलसचिव डा. देवराज, उपकुलसचिव डा. संजीव सिंह, डा. टीबी सिंह, प्रो. एके श्रीवास्तव, डा. एचसी पुरोहित, डा. अजय प्रताप सिंह, डा. एके श्रीवास्तव, डा. अजय द्विवेदी, डा. रामनारायण, डा. वंदना राय, डा. मनोज मिश्र, डा. दिग्विजय सिंह राठौर, डा. अवध बिहारी सिंह, डा. प्रदीप कुमार, डा. रूश्दा आजमी, डा. सुनील कुमार, डा. प्रवीण प्रकाश, डा. आशुतोष सिंह, डा. सौरभ पाल, डा. संतोष कुमार, डा. अमरेंद्र सिंह, डा. मुराद अली, डा. नुपुर तिवारी, डा. संजीव गंगवार, डा. एसपी तिवारी,़ डा. रसिकेश, ऋषि श्रीवास्तव, अमित वत्स, एचएन यादव, सहित शिक्षक, कर्मचारी, विद्यार्थी उपस्थित रहे।









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