Saturday 6 February 2016

‘‘सफलता के मूल मंत्र’’ विषयक व्याख्यान


जौनपुर। प्रमुख उद्यमी और समाजसेवी दीनानाथ झुनझुनवाला ने कहा कि जीवन में सफल होने के लिए सकारात्मक सोच का होना जरूरी है। बिना इसके कोई भी इंसान सफलता के उस लक्ष्य को पार करना तो दूर उसके करीब भी नहीं पहुंच सकता। उन्होंने कहा कि ये बातें कोरे सिद्धांत नहीं, बल्कि मेरे आजमाए हुए सिद्धांत हैं। उन्होंने ये बातें वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में 19वें दीक्षांत समारोह के पूर्व व्याख्यानमाला के तहत इंडस्ट्री इंस्टीच्यूट इंटरफेस प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित ‘‘सफलता के मूल मंत्र’’ विषय पर आयोजित व्याख्यान पर संगोष्ठी भवन में शनिवार को बतौर मुख्य अतिथि कही। उन्होंने चिंतामुक्त और स्वस्थ रहने का राज बताया। कहा कि हमेशा अपने आप को युवा अनुभव करना चाहिए। उदाहरण स्वरूप उन्होंने कहा, अगर कोई मुझसे पूछता है कि मैं कितने वर्ष का हूं तो मेरा उत्तर होता है कि मैं 83 साल का नौजवान हूं। इससे मेरे मन में एक अलग तरह का आत्मविश्वास झलकता है। उनका मानना है कि उपलब्धि क्रिया प्रधान होनी चाहिए, कृपा प्रधान नहीं।
उन्होंने कहा कि दिनचर्या का पालन ही आलस्य का दुश्मन होता है। आलस्य खत्म करने के लिए अपनी दिनचर्या तय करनी जरूरी होगी। उन्होंने कहा कि यह तभी संभव होगा, जब आप कर्म प्रधान बनोगे। उन्होंने धर्मपिता, धर्ममाता व धर्मपत्नी की परिभाषा को तार्किक रूप से समझाया। उन्होंने कहा कि निराशा उसी व्यक्ति के पास आती है, जो लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयास नहीं करना चाहता। समस्या समाधान की जननी है। समस्या जहां से शुरू होती है, समाधान भी वहीं से चलना शुरू होता है। आज मानव का सारा जीवन श्रम पर आधारित है। उसे श्रम का ही अनुसरण करना चाहिए। आज हिन्दू प्रथा में जितने भी आश्रम बने हैं। सभी में श्रम जुड़ा हुआ है। इससे यह पता चलता है कि हर सफलता की नींव में श्रम का विशेष महत्व है। भाग्य को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि यह भी कर्मफल है। इसलिए हर किसी को पुरूषार्थी बनना चाहिए। उनका मानना है कि पुरूषार्थी वही है जो समय, शक्ति और सम्पदा का पूरा उपयोग करता है।
उन्होंने कहा कि कोई भी काम करने से पहले हमें दृढ़ निश्चयी होना चाहिए। अनिश्चितता और भय की स्थिति हमें असफलता का मार्ग दिखाती है। इस बात को उन्होंने सड़क पार करते समय कार से दबकर मरते हुए खरगोश का उदाहरण देकर समझाया। उनका मानना है कि किसी भी काम को करने से पहले मनुष्य को संशय की स्थिति में नहीं रहना चाहिए। इस पर उन्होंने गांधी, रैदास, गीता, रामायण और विवेकानन्द के विचारों को विस्तृत रूप से समझाया। उन्होंने कहा कि किसी भी सफल व्यवसाय के लिए अनुशासन महत्वपूर्ण होता है। कभी-कभी इसे न अपनाने पर समस्याएं गम्भीर रूप ले लेती हैं। उन्होंने कहा कि क्षमता से कम काम करने वाला भी कामचोर होता है। शक्ति के बोध की व्याख्या उन्होंने रामायण के किष्कंधा पाठ में जामवंत के संवाद को सुनाकर की। उन्होंने कहा कि अगर आपको ऊंचाईयों को छुना है तो अपने जीवन की कमजोरियों को छिपाने के बजाय उसे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।
प्रबंधन के छात्रों में रोजगार के अवसर के संबंध में उन्होंने कहा किताबी ज्ञान के साथ-साथ उन्हें अनुभव से भी जोड़ना जरूरी है। ज्ञान और कर्म के संयोग से ही आदमी सफल उद्यमी बन सकता है। यह बात हर क्षेत्र में शत-प्रतिशत लागू होती है। उन्होंने कहा कि प्रबन्धन एक ऐसी विद्या है जो 24 घण्टे आपको नियोजित ढंग से रहने की प्रेरणा देती है। यह सर्वव्यापी है, सर्वकालिक है, इसका उपयोग हर सफल व्यक्ति को करना चाहिए। इस संबंध में उन्होंने कुमार मंगलम, बिड़ला और रतन टाटा के संदर्भ सुनाएं। उन्होंने कहा कि जीवन में समय प्रबंधन जरूरी है। जो व्यक्ति ज्यादा व्यस्त रहता है, उसी के पास काम करने का समय भी होता है।
इसके पूर्व मुख्य अतिथि दीनानाथ झुनझुनवाला को पुष्पगुच्छ देकर डा. एच.सी. पुरोहित व डा. मुराद अली ने सम्मानित किया। साथ ही डा. विक्रम देव शर्मा ने स्मृति चिन्ह भेंट किया। इसके बाद मुख्य अतिथि का परिचय स्वागत व्याख्यान माला के संयोजक डा. अजय द्विवेदी ने किया। व्याख्यान माला का संचालन डा. एच.सी. पुरोहित ने किया। इस अवसर पर डा. अविनाश पार्थिडकर, आशुतोष सिंह, आलोक गुप्ता, डा. मनोज मिश्र, डा. दिग्विजय सिंह राठौर, डा. अवध बिहारी सिंह, डा. सुनील कुमार, डा. रूश्दा आजमी, डा. राजीव कुमार, धर्मेन्द्र कुमार, आलोक दास आदि सहित सभी संकायों के विद्यार्थी उपस्थित थे। धन्यवाद ज्ञापन डा. मुराद अली ने किया। 

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