Wednesday 25 February 2015

उत्तर प्रदेश सरकार के बजट पर जनसंचार विभाग में परिचर्चा



वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में उत्तर प्रदेश के अखिलेश सरकार के बजट 2015-16 पर बुधवार को परिचर्चा हुई। परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि एक तरफ किसानों को सब्जबाग दिखाये गये है वहीं दूसरी ओर उद्योग जगत को कोई राहत न देकर उससे अप्रत्यक्ष रूप से और कर लेने की ओर इशारा किया गया है। परिचर्चा में जनसंचार विभाग के चतुर्थ सेमेस्टर के विद्यार्थी कुलदीपक पाठक एवं द्वितीय सेमेस्टर के विद्यार्थी अंकित जायसवाल को चर्चा में बेहतरीन प्रस्तुति के लिए विभागाध्यक्ष डा. अजय प्रताप सिंह, प्राध्यापक डा. मनोज मिश्र एवं डा. सुनील कुमार ने पुस्तक प्रदान कर पुरस्कृत किया।
परिचर्चा में भाग लेते हुए विभाग के विद्यार्थी कुलदीपक पाठक ने कहा कि सरकार ने किसानों को अपने पक्ष में करने के लिए कुछ लुभावने वादे तो किये है मगर विकास, बिजली, सड़क, सिंचाई जैसे मुद्दे को हासिये पर रख दिया है जो कि ठीक नहीं है। विद्यार्थी अंकित जायसवाल ने कहा कि उक्त बजट में शहर और गांव के बीच विकास के मामले में पक्षपात किया गया है। प्रदेश सरकार इस बजट में अपने वोटबैंक को बढ़ाने के लिए गांवों की ओर रूख किया है, उसे शहर और उद्योग को भी बढ़ावा देना चाहिए, तभी यह बेहतर बजट होता। श्रीवेश यादव ने कहा कि यह शुद्ध रूप से मिड बजट है। इसमें सबके लिए कुछ न कुछ है। प्रमोद सोनकर ने कहा कि लैपटाॅप योजना फिर से शुरू करने से सूचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मदद मिलेगी। रिजवान अहमद ने कहा कि इस बजट में ऊर्जा के क्षेत्र में कोई ठोस काम नहीं दिखाई दे रहा है जबकि विकास से जुड़े सभी घटक इसी पर निर्भर है। नरेंद्र गौतम ने कहा कि प्रदेश की सड़कों की हालत बहुत खराब है। समयबद्ध तरीके से इसको दुरूस्त करने के लिए कोई प्रावधान नहीं दिखाई देता। सत्यम श्रीवास्तव ने कहा कि महंगी होती चिकित्सा के लिए मध्यम वर्ग और गरीबों के लिए इस बजट में कुछ विशेष प्रावधान किये जाने चाहिए थे। सामान्य से पैथोलाॅजी जांच कराने में गरीब परेशान हो जाता है। मूलचन्द्र विश्वकर्मा ने कहा कि मेट्रो के साथ-साथ जो दूसरे और तीसरे नम्बर के शहर है वहां की यातायात व्यवस्था को दुरूस्त करने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। दिग्विजय मिश्र ने कहा कि राज्य में लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योगों के विस्तार पर बहुत ध्यान देने की जरूरत थी, मगर सरकार ने कोई पहल नहीं की, इससे बेरोजगारी और महंगाई दोनों बढ़ेगी। परिचर्चा में निर्णायक के रूप में विभाग के प्राध्यापक डा. मनोज मिश्र, डा. सुनील कुमार, डा. रूश्दा आजमी शामिल थी।

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