Wednesday 18 February 2015

उच्च शिक्षा की समस्याएं, शैक्षिक प्रबंधन एवं शिक्षक संघों की भूमिका विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन(16-17 फ़रवरी ) )




वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में सोमवार को जनपद महाविद्यालय शिक्षक संघ जौनपुर द्वारा उच्च शिक्षा की समस्याएं, शैक्षिक प्रबंधन एवं शिक्षक संघों की भूमिका विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ।
संगोष्ठी भवन में आयोजित उद्घाटन सत्र में देश के विभिन्न भागों से आये शिक्षाविद्ों ने उच्च शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर अपनी बात रखी। वर्तमान समय में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आ रही समस्याओं की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया।
उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि प्रख्यात समाज विज्ञानी एवं वरिष्ठ पत्रकार प्रो. रामशरण जोशी ने कहा कि देश की उच्च शिक्षा में गुणवत्ता लाने की जरूरत है। इसके साथ ही शिक्षा नीति का लाभ हासिये पर बैठे लोगों को मिले इस दिशा में बड़े प्रयास की जरूरत है। आज देश में मुद्दा यह है कि शिक्षा एक्सक्लूसिव हो या इनक्लूसिव। इस पर बहस हो रही है। मेरा मानना है कि शिक्षा और शोध की गुणवत्ता पर किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा स्वयं में एक स्वतंत्र प्रक्रिया नहीं होती। इसमें निरन्तर बदलाव हो रहे है। मगर यह राजनीतिक परिदृश्य पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल शिक्षित करने का माध्यम न बने यह वैश्वीकरण में बाजार से जोड़ने वाली होनी चाहिए। उन्होंने शिक्षा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिक्षा उद्देश्यपरक, धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर गिरने का प्रमुख कारण शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं व्यापारीकरण है। 
विशिष्ट अतिथि भारतीय दलित अध्ययन संस्थान की अध्यक्षा एवं इग्नू की प्रोफेसर विमल थोराट ने कहा कि आदिवासियों तक उच्च शिक्षा नहीं पहुंची है। उन्हें मुख्य धारा में जोड़ने के लिए जाति, धर्म और लिंग के आधार पर समावेशित शिक्षा की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सरकार के आंकड़े बता रहे हैं कि शिक्षा के नाम पर मतभेद के कारण बहुत सी विसंगतियां पैदा हुई। जो कि हमारे लोकतांत्रिक देश के लिए ठीक नहीं है। इसके लिए सरकार शिक्षक समुदाय को बच्चों के साथ संवेदनशील बनना पड़ेगा। एआईफुक्टो के महासचिव प्रो. अशोक बर्मन ने कहा कि शिक्षा में गुणवत्ता की कमी के कई कारण है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में शिक्षकों के कई खाली पद है। जिन्हें भरने की कोशिश नहीं हो रही है। बल्कि उनका काम संविदा के शिक्षकों द्वारा चलाया जा रहा है। दूसरा कारण शिक्षा के व्यवसाय में गैर शिक्षा के लोगों की भागादारी हमारे के लिए हानिकारक है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग दोनों शिक्षा के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सुस्ती बनाये हुए है। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अली जावेद ने शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण पर आपत्ति जतायी। उन्होंने कहा कि सरकार समस्याओं के प्रति गंभीर नहीं है। आरक्षण नीति का पालन भी प्रवेश में हो रहा है मगर नौकरियों में नहीं। प्रख्यात समीक्षक प्रो. चैथीराम यादव ने कहा कि शिक्षा की दोहरी नीति है। जिसके कारण यह आम जन तक नहीं पहुंच पा रही है। हासिये पर बैठे लोगों तक जब तक शिक्षा नहीं पहुंची तब तक कोई समाज और देश तरक्की नहीं कर सकता।
 अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पीयूष रंजन अग्रवाल ने कहा कि आज हमारे पास उच्च शिक्षा के क्षेत्र में समस्या नहीं चुनौतियां है। आज शिक्षा के प्रति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, शिक्षण संस्थान और विद्यार्थियों के अभिभावक की बराबर आकांक्षाएं है। उन्होंने कहा कि आज शिक्षण संस्थान और शिक्षक को विद्यार्थियों के समग्र विकास के बारे में सोचना होगा। हमें हर शिक्षण संस्थान में एकेडिमक स्टाफ कालेज खोलने चाहिए। आज शिक्षण संस्थाओं की सोशल आॅडिट कराने की जरूरत है। विश्वविद्यालयों में सुधार के लिए जब तक बेंच मार्किंग नहीं होगी तब तक इसे ठीक नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि शिक्षा की नीति लघु स्तर, मध्यम स्तर और विस्तृत स्तर तीनों को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। इसके पूर्व अतिथियों ने मां सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। तत्पश्चात विश्वविद्यालय की छात्राओं ने सरस्वती वंदना एवं कुलगीत प्रस्तुत किया। स्वागत भाषण आयोजन सचिव के अध्यक्ष डा. राजीव प्रकाश सिंह ने किया। उन्होंने मंचासीन अतिथियों का विस्तृत परिचय भी कराया। 
कार्यक्रम के संगोष्ठी के संयोजक डा. राकेश सिंह ने कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। इसके बाद प्रो. कीर्ति सिंह, एमएलसी डा. चेतनारायण सिंह एवं मंचासीन अतिथियों को अंगवस्त्रम् एवं स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डा. एचसी पुरोहित ने और धन्यवाद ज्ञापन डा. अनिल प्रताप सिंह ने किया। इसके बाद प्रथम तकनीकी सत्र शुरू हुआ। जिसकी अध्यक्षता प्रो. कीर्ति सिंह और संचालन डा. राजीव कुमार झा ने किया। सेमिनार में प्रो. डीडी दूबे, प्रो. बीबी तिवारी, डा. घनश्याम सिंह, डा. काशी नाथ सिंह, डा. हरिश्चंद्र सिंह, प्रो. रामजी लाल, डा. यूपी सिंह, डा. संजय श्रीवास्तव, डा. अमरेश, रमेश सिंह, प्रमोद श्रीवास्तव, डा. मानस पाण्डेय,डा. लालजी त्रिपाठी, डा. वंदना दूबे, डा. आरएन त्रिपाठी, डा. प्रदीप कुमार, डा. पंकज सिंह, डा. वंदना राय, संदीप सिंह, अविनाश पाथर्डिकर, डा. दिग्विजय सिंह राठौर, डा. अवध बिहारी सिंह, डा. केएस तोमर, डा. इंद्रेश कुमार, डा. सुनील कुमार, डा. रूश्दा आजमी समेत तमाम शिक्षक, विद्यार्थी मौजूद रहे।  
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दूसरा दिन 

दिनांक 17.02.2015

दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ समापन
जौनपुरआयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘उच्च शिक्षा की समस्याएं शैक्षिक प्रबंधन एवं शिक्षक संघों की भूमिका’ का संगोष्ठी भवन में मंगलवार को समापन हुआ।
दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के विभिन्न भागों से आए शिक्षाविदों  ने उच्च शिक्षा की वर्तमान स्थिति से लेकर समस्याएं एवं भविष्य की चुनौतियों पर गंभीर चर्चा की गयी।
संगोष्ठी के अंतिम दिन आयोजित द्वितीय तकनीकी सत्र में प्रो. अली जावेद, चंचल सिंह, प्रो. राजकुमार, जयप्रकाश धूमकेतु, प्रो. आनन्द दीपायन, डा. विवेक निगम एवं वंदना चैबे ने विषयक के विभिन्न पहलुओं पर अपनी बात रखी। तकनीकी सत्र का संचालन डा. एचसी पुरोहित एवं मोहम्मद आरिफ ने किया।
अंतिम सत्र में बतौर मुख्य अतिथि प्रख्यात शिक्षाविद् प्रो. अनिल सद्गोपाल ने कहा कि आने वाले समय में उच्च शिक्षा प्राइवेट कम्पनियों के कब्जे में होगी। उत्पादों के नाम पर सेमिनार और व्याख्यान होंगे। हमारी सरकारें आज विदेशी विश्वविद्यालयों को आमंत्रित कर रही है। उच्च शिक्षा पर सरकारें लगातार खर्च घटा रही है। आज शिक्षा बीमार नहीं बल्कि मर चुकी है। पूर्व केंद्र सरकार द्वारा गठित उद्योगपतियों की एक समिति के  रिपोर्ट में कहा गया कि उच्च शिक्षा को बाजार को सौंप देना चाहिए क्योंकि बाजार यह तय करे कि उच्च शिक्षा में क्या पढ़ाया जाय या नहीं। यह बहुत ही विचार का विषय है। यह रिपोर्ट मानव संसाधन विकास मंत्रालय को न सौंपकर प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार को सौंपी गयी है जिससे इसकी मंशा साफ जाहिर हो रही है। 
प्रख्यात पत्रकार एवं अन्वेषक अभय कुमार दूबे ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में धन हावी होने से विषमताएं बढ़ रही है। धनवान विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए जाता है और मेधावी विद्यार्थियों को अपने देश में संसाधन नहीं मिल पाता। आज देश में शिक्षा के क्षेत्र में बाजार के अवसर उपलब्ध हो गये है। मगर अच्छे टेक्नीकल और प्रोफेसनल लोगों की संख्या 25 प्रतिशत ही है। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की जरूरत है यह सुधार आर्थिक के साथ साथ प्रशासनिक और पुलिसिंग के क्षेत्र में भी होना चाहिए।
पूर्व कुलपति प्रो. डीडी दूबे ने कहा कि आज उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उ.प्र. में लगातार शिक्षकों की कमी हो रही है। सरकार को इस दिशा में तेजी से कार्य करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि नियमित शिक्षक संविदा शिक्षकों का शोषण कर रहे है। यह दुखद है।
वल्र्ड टीचर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डा. घनश्याम सिंह ने कहा कि देश की सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या है। जनसंख्या नियंत्रित किये बिना उच्च शिक्षा का विकास नहीं हो सकता। कहा कि अविरल गंगा प्राचीन समय से बह रही है और आज प्रदूषित हो चुकी है पीने लायक नहीं है उसी प्रकार शिक्षा भी प्रदूषित हो चुकी है। आज तमाम कम्पनियां गंगा जल को बोतलों में भरकर बेच रही है और उसे वहीं लोग पीते है जिसके जेब में पैसा होता है। ठीक उसी प्रकार शिक्षा का भी हाल है। शिक्षा आज बड़ी बड़ी इंन्स्टीच्यूट में चल रही है उसमें वहीं पढ़ सकता है जिसके जेब में धन हो। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में 50 प्रतिशत तक उच्च शिक्षा के शिक्षकों का पद रिक्त है लेकिन सरकार इस पर कोई कार्य नहीं कर रही है। समापन सत्र की अध्यक्षता पूर्व डीजीपी, पूर्व कुलपति महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र विभूति नारायण राय ने की। 
संगोष्ठी के संयोजक डा. राकेश सिंह ने दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की आख्या प्रस्तुत की एवं अतिथियों का स्वागत किया। उ.प्र. विश्वविद्यालय महाविद्यालय शिक्षक महासंघ के अध्यक्ष डा. राजीव प्रकाश सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। संगोष्ठी का संचालन प्रबंधक संकायाध्यक्ष डा. एचसी पुरोहित एवं डा. संजय श्रीवास्तव ने किया।
इस अवसर पर प्रो. रामशरण जोशी, डा. राममोहन सिंह, डा. अनिल प्रताप सिंह, डा. आरएन त्रिपाठी, डा. आशुतोष सिंह, डा. अमरेश पाठक, डा. रमेशमणि त्रिपाठी, डा. सरोज सिंह, डा. सतेंद्र त्रिपाठी, डा. अजय प्रताप सिंह, डा. दिग्विजय सिंह राठौर, डा. अवध बिहारी सिंह, डा. सुनील कुमार, डा. इंद्रेश, डा. रूश्दा आजमी सहित तमाम शिक्षक, विद्यार्थी मौजूद रहे।



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