Monday 22 July 2013

पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को तार्किक प्रवृत्ति का होना होगा



राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद भारत सरकार के निदेशक डा.मनोज कुमार पटैरिया ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को तार्किक प्रवृत्ति का होना होगा। इससे विकास व प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाया जा सके। उन्होंने कहा कि पहले शाश्त्रार्थ ज्ञान को बढ़ाते थे लेकिन आज तर्क के लिए जगह नहीं है लोग केवल अपनी बात लागू करना चाहते हैं चाहे वह गलत हो या सही. इन्ही अवैज्ञानिक अवधारणाओं  के चलते पर्यावरण का संकट भी  बढ़ रहा है, आज हमें इसे संतुलित करने की जरूरत है। यह बातें उन्होंने शनिवार को वीर बहादुर सिंह पूर्वाचल विश्वविद्यालय के संकाय भवन के मॉस काम में आयोजित पर्यावरण संरक्षण एवं विकास में विज्ञान संचार की भूमिका विषय पर आयोजित गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि कही।


उन्होंने कहा कि नेपकीन व साफ्टीकेटेड पेपर जैसी चीजों के निर्माण में हजारों पेड़ों को काटा  जाता  हैं और फिर उसे बनाने में जिस प्रक्रिया का इस्तेमाल होता है वह भी पर्यावरण के प्रतिकूल ही है . इसके  इस्तेमाल पर पर भी हमें स्वयं अंकुश लगाना होगा और उसके विकल्प के रूप में हमें  रुमाल जैसी चीजों के  इस्तेमाल को बढ़ावा देना होगा  जो फिर से काम में  आ सके  । अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.सुंदर लाल ने कहा कि पर्यावरण का महत्व हर किसी के जिंदगी से जुड़ा है। प्रकृति भी हर किसी की जरूरत को पूरा करने में सक्षम है मगर व्यक्ति की लालच को वह सहन नहीं कर पाती है जिसके चलते उसे अपना रौद्र रूप दिखाना पड़ता है। तब दिखाई पड़ती है उत्तराखंड जैसी त्रासदी।उन्होंने कहा कि हमें पर्यावरण के संकट से उबरने के लिए गाँधी के मनोविज्ञान को अपनाना होगा। प्राचीन ग्रंथों  में इस बात का उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण यमुना को प्रदूषित होने से बचाने के लिए आगे आए थे। हर किसी की जरूरत से ज्यादा उसकी भावना को समझना जरूरी है।


कार्यक्रम की शुरुआत में कुलपति प्रो. सुंदर लाल ने डा.मनोज पटैरिया को अंगवस्त्रम व स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया।

इस मौके पर प्रो.एमपी सिंह, डा.अजय प्रताप सिंह, डा.एसके सिन्हा, डा.अवध बिहारी सिंह, डा.एसपी तिवारी, डा.सुनील कुमार, डा.विवेक पांडेय, डा.सुधीर उपाध्याय, डा.चंद्रशेखर सिंह आदि मौजूद थे। संचालन डा.मनोज मिश्र व आभार प्रो.रामजी लाल ने व्यक्त किया।





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