Sunday 26 August 2012

26 अगस्त को मऊ के ऋषि रामनरेश कृषक महाविद्याल मे लगा बापू बाज़ार

               
             बारहवें बापू बाज़ार का उद्घाटन करते हुए  एक वृद्ध ग्रामीण  साथ मे  दाहिने प्रो डी डी  दूबे और बाएं डॉ हीतेंद्र  प्रताप सिंह 
 







Wednesday 15 August 2012

स्वतंत्रता दिवस


आज स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षकों,अधिकारीगण ,कर्मचारी गण और विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कुलपति प्रोफेसर सुन्दर लाल जी नें कहा कि ------
  स्वतंत्र  भारत आज ६५ वर्ष का हो गया.इस ६५ वर्ष के इतिहास में जहाँ अनेकों स्वर्णिम पृष्ठ  भरे पड़े हैं वहीं काले पन्नों की भी कमी नहीं है.आज स्वत्रंत्रता की  वर्षगांठ पर सुनहरे पल की बात करता हूँ .स्वर्णिम पृष्ठों की श्रृंखला में अभी एक और अध्याय जुड़ा है और हमें गर्व है ,हम अपनें  को सौभाग्यशाली समझते   है कि  उस पृष्ठ के लिखे जाने के हम भी साक्षी हैं.यह स्वर्णिम पृष्ठ और कोई नहीं लन्दन ओलम्पिक में हमारे होनहारों द्वारा ६ पदकों की प्राप्ति है .जिन देशवासियों की ऑंखें ओलम्पिक पदक तालिकाओं में भारत के एक अथवा शून्य देखने की आदी हो चुकी हों ,वहां ६ की संख्या सचमुच चकित करती है.ये ६ पदक हमारे देश के सभी भौगोलिक हिस्सों (मणिपुर से लेकर हरियाणा ,हिमांचल से लेकर कर्नाटक तक )सहित ग्रामीण भारत ,शहरी क्षेत्रों का भी   प्रतिनिधित्व करते हैं.खेलों के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारतीय नारी का का भी जयघोष  हुआ है.मैं  इस पृष्ठ को अपने इतिहास का बंगलादेश विजय से भी अधिक चमकीला मानता हूँ.

ओलम्पिक चार वर्ष के अंतराल पर पर होते है तथा इसमें कुछ चयनित प्रतिभागी ही शिरकत करते है.एक और ओलम्पिक है जो सतत रूप में चलता है.स्वत्रन्त्र भारत के जन्म से ही चलता आ रहा है ,इसके प्रतिभागी कुछ चयनित व्यक्ति नहीं वरन इस देश का प्रत्येक 

नागरिक है.इस ओलम्पिक में सफलता के मानक गतिमान हैं,उपलब्धि के साथ-साथ ऊँचे होते चलते है .मेरा आशय स्वत्रन्त्र भारत में भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध से है.भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध का ये ओलम्पिक (स्वतंत्र)देश के जन्म से ही चल रहा है और देश का प्रत्येक (प्रबुद्ध)नागरिक इस ओलम्पिक में प्रतिभागी बन कुछ सफलता प्राप्त करना चाहता है.रास्ते  भी सबके एक जैसे नहीं है.कोई खून खराबा करता है तो कोई मार पीट.कोई धरना प्रदर्शन करता है तो कोई अनशन.कोई-कोई सिरफिरा तो आमरण अनशन तक कर बैठता है.पिछले ६५ वर्षों से चल रहे इस ओलम्पिक को  कुछ छोटी -मोटी सफलता मिली हो तो मिली हो,किसी पदक प्राप्त करने लायक सफलता किसी को नही मिली है ,कम से कम इतिहास तो ऐसा ही कहता है.एक बाधा-दौड़  चलती सी लगती है जिसमें अवरोधों की सीमा  भी निर्धारित नहीं है.सफ़ेद धोती-कुरता पहने ,टोपी लगाये एक गंवार अनशन पर बैठ गया और गवारु   भाषा में बोला लोकपाल लाओ लाओ नहीं तो जाओ .वातावरण में गूंजती कानफोडू आवाज़ कहती है  न लोकपाल लायेंगे -न लाने देंगे,पर तुम्हे जरूर ठिकाने लगा देंगे.
ओलम्पिक के प्रतिभागी जानते है की सफलता कठिनता से मिलती है .तात्कालिक असफलताओं से निराश न होने वालों को मदद अपनें साहस  और तकनीकी में सुधार से मिलती है .इसका  उदाहरण हमें एक अन्य ओलम्पिक में देखने को मिला जो पिछली सदी  के प्रारंभ में खेला गया था और जिसकी परिणति हम आज ६६वे स्वतंत्रता दिवस के रूप में देख रहे हैं.आजादी के आन्दोलन में कितने उतर-चढाव आये ,अनेको बार  -लगा कि  आन्दोलन दम तोड़ देगा पर एक शख्स था जो इस मैराथन में भी लगातार दौड़ता रहा ,तात्कालिक लाभों की चिंता कए बगैर .उसे विश्वास था लक्ष्य तक पहुचने का .दूर से ही धीमी ही सही आजादी की दस्तक वह सुन रहा था.प्रश्न यह उठता है ,क्या था कारण उसके विश्वास का ,क्या थी वो शक्ति  जो उस क्षीण काय को और उत्तेजित और स्फूर्तिक बना रही थी  ?
महात्मा गांधी जी के चरित्र की शुद्धता बेजोड़ थी .संभवतः पूरे विश्व के इतिहास में गांधी जी जैसे शुद्ध चरित्र का मिलना दुष्कर है .इस हेतु उन्होंने कभी समझौता नहीं किया ,नितांत अकेला पड़ जाने के डर  से भी .यही उनकी पूंजी थी .चारित्रिक शुद्धता ही उनके लिए ईश उपासना का चरम था यही उनकी शक्ति और विश्वास था.इसी गुण के कारण भारतीय समाज के हर पक्ष पर उनका प्रभाव पड़ा .आज १५ अगस्त का दिन उनकी उपलब्धियों का स्थूलतम साक्ष्य है.

ऐसा लगता है गांधी की विदाई के साथ ही उनकी शक्ति का यह स्रोत हमारे समाज से काफूर हो गया .हजारों -करोड़ों के घोटाले आम होने लगे और भ्रष्टाचार की बात कुछ सिरफिरे लोंगों का शगल माना  जाने लगा.संसद मुंह चुराने लगी और नेतागण शब्दों की जुगाली करने लगे .हमारे छात्र क्या इस स्थिति के प्रति जागरूक हैं?चरित्र की शुद्धि के प्रयास क्या उनके किसी एजेंडे में शामिल है?यदि हाँ तो हम उस दिन की प्रतीक्षा में जी सकते है जिस दिन देश उसी खुशी से झूमेगा जैसे आज हमारे ६ जाबांज  पदक विजेताओं की उपलब्धियों से है.इसी अवस्था  में हम अपनी स्वतंत्रता  के इतिहास में नये-नये स्वर्णिम पन्ने जोड़ पाएंगे.