Tuesday 15 November 2011

सूचना - सप्रेषण तकनीक द्वारा नारी - सशक्तिकरण


विषय में दो मूल बिन्दु है: नारी सशक्तिकरण एवं सूचना - संप्रेषण तकनीक। नारी सशक्तिकरण के मामले में तो हम निरे ढोंगी है। जिस सांस्कृतिक परम्परा के हम वाहक है उसमें नारी को पूजते हैं ऐसा हम गर्व से कहते है, पर जिस सामाजिक वातावरण में हम रहते है वहां  नारी को घूरते है और अवसर मिलने पर उसका शोषण करते  हैं। स्थूल रूप में ही नहीं समस्त सूक्ष्म भावात्मक रूपों तक में, हम सभी इससे ग्रस्त है। समर्थ एवं प्रभावशालियों से नारी स्थूल रूप में त्रस्त है तो प्रचार माध्यमों द्वारा भावानात्मक रूप में त्रस्त है। नल की टोटी और जो साबुन के रैपर से लेकर मोबाइल और लैपटाप के प्रचार हेतु समाचार पत्र/ इलेक्ट्रोनिक मीडिया नारी के निखार और उसके भावपूर्ण भगिमाओं के प्रसार  का प्रदर्शन करते है, भावानात्मक रूप में शोषित करते है। सीताराम, राधाकृष्ण, उमाशंकर का उदाहरण देने वाला हमारा समाज अनेक सीताओं, राधाओं और उमाओं को उदर में ही समाप्त कर रहा है। देश के हर भाग में, हर धार्मिक समुदाय में हर सामाजिक एवं हर आर्थिक वर्ग में नर-नारी के संख्या प्रतिशत में बढ़ता अंतर इसका प्रमाण है।
सूचना-सप्रेषण तकनीक के प्रसार व्यवहार में हममें गर्व का भाव है। इस तकनीक ने हमारे जीवन , खान-पान , रहन-सहन , आचार-विचार, काम, व्यापार सभी को बदल कर रख दिया है। मोबाइल बिना हम गूंगे , बहरे हैं तो इंटरनेट बिना कूप-मंडूक। नारी सशक्तिकरण जैसी गम्भीर समस्या एवं सूचना-संप्रेषण तकनीक जैसा सशक्त माध्यम, सेमीनार का विषय अत्यन्त व्यापक है और इस पर, इससे सम्बन्धित पहलुओं  पर एक दिन नहीं, सप्ताहों और महीनों विमर्श चल सकता है। मैं कुछ बिन्दुओं पर संक्षेप में कुछ कहना चाहूंगा -
सूचना-सम्प्रेषण  तकनीक एवं नारी सशक्तिकरण पर अधिकांश अध्ययन सशक्तिकरण के दो बिन्दुओं पर केन्द्रित रहे है आर्थिक व राजनैतिक। सशक्तिकरण का राजनैतिक पक्ष तो राजनीति में उलझ गया है और नारी सशक्तिकरण का वास्तविक मुद्दा पीछे खिसक गया है। आर्थिक सशक्तिकरण पर किये गये अधिकांशतः अध्ययन अपेक्षाकृत संपन्न वर्ग की समस्याओं, सूचना-सप्रेषण तकनीक द्वारा उत्पन्न कार्य एवं सेवा क्षेत्र, कार्य स्थलों पर लिंग आधारित भेदभाव तथा नियामक मण्डलों में नारी भागीदारी की अल्पता आदि विषयों पर केन्द्रित रहे है। सामाजिक रूप में उपेक्षित एवं आर्थिक रूप से निर्बल वर्ग की नारियों की समस्याओं का जो एक विशाल संजाल है, उस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। सूचना-सप्रेषण तकनीक सम्पन्न और समर्थ वर्ग की आवश्यकताओं पर जितना केन्द्रित है, सम्पन्नता और सामर्थ्य  की धारा को विपन्नता और निर्बलता के नालो की ओर मोड़ने के प्रयासों में उतना सक्रिय नहीं है - सारा दिन गारा मिट्टी और ईट ढोने वाली, बांस  छील कर टोकरी बनाने वाली, सड़क किनारे फूल और सब्जी बेचने वाली महिलाओं के जीवन को सूचना-संप्रेषण तकनीक ने कितना छुआ और कितना सशक्त बनाया है, विचार का विषय है। दूरदर्शन के माध्यम से परोसे गये मनोरंजन से उसकी थकान कम हो सकती है, कुछ समय के लिए चिन्ता से मुक्ति हो सकती है पर उसका सशक्तिकरण नहीं कर पाती। उसकी गरिमा में वृद्धि नहीं करती, उसकी दूसरों पर निर्भरता में  कमी नहीं करती। निर्धनता उसे सूचना-संप्रेषण उपकरणों की उपलब्धता से दूर रखती है तो निरक्षरता वह भी अंग्रेजी भाषा के प्रति निरक्षरता उसे इन उपकरणों के प्रयोग से दूर रखती है। इस समस्या पर गम्भीर विचार की आवश्यकता है। नारी की निर्धनता, निरक्षरता और नर-निर्भरता शीघ्र समाप्त होने वाली समस्यायें नहीं है इनके निराकरण की अवधि लम्बी है। इसी लम्बी अवधि में नारियों को सूचना-संप्रेषण उपकरण उपलब्ध कराने तथा उपयोग कराने के प्रयास होने चाहिए। यहाँ  एक सुझाव है - हम 1200-1500 रू0 मूल्य का लैपटाप बना सकते हैं तो 50-60 रू0 का मोबाइल सैट भी बना सकते है जिसमें आवश्यक न्यूनतम सुविधायें उपलब्ध हो काल   भेजने, काल  प्राप्त करने तथा फोन बुक को खंगालने जैसी मूलभूत सुविधाओं वाले इस मोबाइल में फोन बुक में प्रविष्टी  शब्दों के बजाय चित्रो से हो सकती है। पुलिस के चित्र पर क्लिक कर वह निर्धन निरक्षर महिला आवश्यकता पड़ने पर अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस स्टेशन से सम्पर्क कर सकती है, नारी के चित्र पर क्लिक कर सहायता के लिए महिला संगठनों से सम्पर्क कर सकती है, नर्स के चित्र पर क्लिक कर डाक्टर से मेडिकल सलाह/सहायता मांग  सकती है, रूपये के चित्र पर क्लिक कर मण्डी से अपनी उपज के दैनिक भाव पूंछ  सकती है, घर के चित्र पर क्लिक कर परिवार से सम्पर्क बनाये रख सकती है, किताब पर क्लिक कर शिक्षा व टीवी पर क्लिक कर मनोरंजन के सूत्रों से जुड़ सकती है। बिना अक्षर-अंक साक्षरता के भी सूचना-सप्रेषण के कुछ साधन वह महिला प्रयोग कर पायें ऐसे प्रयास होने चाहिए।

(उदय प्रताप कालेज, वाराणसी में नवम्बर, 12, 2011 को आयोजित- सूचना - सप्रेषण तकनीक द्वारा नारी - सशक्तिकरण विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी  में बतौर मुख्य अतिथि अपना विचार रखते हुए माननीय कुलपति प्रो.सुंदर लाल जी )

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